आज मैंने सोचा की कुछ अलग लिखते हैं, आज शाम में कुछ अलग बात है।
" खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती, खुशबू जो बे-आवाज़ है।
जिसका पता तुमको भी है, जिसकी खबर मुझको भी है,
दुनिया से भी छुपता नहीं, ये जाने कैसा राज़ है।"
जावेद अख्तर द्वारा लिखी गई और फ़िल्म ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011) में सुनाई गई यह कविता इंसानी एहसासों के बारे में है, कि कैसे हम कई ज़रूरी बातों को अनकहा छोड़ देते हैं। इनमें से कुछ बातें हमारे दिल के क़रीब होती हैं और कुछ उतनी नहीं। लेकिन मुझे ये पंक्तियाँ ख़ासतौर पर तब दिलचस्प लगती हैं, जब आप एक आम सब्ज़ी, प्याज़ और उसकी आँखों में जलन पैदा करने वाली गंध के बारे में सोचते हैं।
प्याज़, उसकी तेज़, ख़ास महक, एक ख़ामोश राज़ है, ठीक उसी तरह जैसे इस कविता में बताया गया है। मेरे लिए, ये पंक्तियाँ प्याज़ की प्रकृति को खूबसूरती से बयाँ करती हैं। इसकी महक एक अनकहा राज़ है जिसे हर कोई जानता है, एक अदृश्य उपस्थिति जो बिना आवाज़ के खुद को महसूस कराती है, और हवा में अपने एहसास को भर देती है। प्याज, जो दुनिया भर के पकवानों का एक अहम हिस्सा है, हज़ारों सालों से मानव इतिहास में एक ख़ामोश लेकिन शक्तिशाली उपस्थिति रहा है।
लगभग 3000 ईसा पूर्व के प्राचीन मिस्र के मजदूरों और फिरौन से लेकर, जो इसे अनंत जीवन का प्रतीक मानते थे, और लगभग 2000 ईसा पूर्व के सुमेरियों तक, जिन्होंने अपनी clay tablets पर इसका इस्तेमाल दर्ज किया था, प्याज़ ने हमारे भोजन को लगातार स्वादिष्ट बनाया है। इसका गहरा सांस्कृतिक महत्व चरक संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जहाँ भारत में प्याज़ या "पलांडु" को औषधीय गुणों के लिए जाना जाता था। आज, प्याज़ और लहसुन व लीक जैसे एलियम परिवार के अन्य सदस्य खाना पकाने में बहुत ज़रूरी हैं। यही तेज़ महक हमारे आँसुओं के लिए भी ज़िम्मेदार है। जब आप प्याज़ काटते हैं, तो एक दो-चरणीय रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू होती है। सबसे पहले, एलियेनेस (alliinase) नामक एंजाइम निकलता है, जो सल्फेनिक एसिड बनाता है।
फिर, एक हाल ही में खोजा गया एंजाइम, लैक्रीमेटरी-फैक्टर सिंथेज़ (lachrymatory-factor synthase - LFS),इन एसिड को सिन-प्रोपेनेथियल-एस-ऑक्साइड (syn-propanethial-S-oxide) नामक एक वाष्पशील गैस में बदल देता है। यह गैस हवा में ऊपर उठती है, आपकी आँखों तक पहुँचती है और तंत्रिकाओं में जलन पैदा करती है, जिससे एक प्राकृतिक सुरक्षा तंत्र के रूप में आँसू बहने लगते हैं। प्याज के कंदों को काटने पर होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ। इस चरण में नए खोजे गए एंजाइम एलएफ सिंथेज़ का उल्लेख किया गया है। पहले, यह माना जाता था कि काटने के बाद एलिनेज़ की क्रिया के बाद लैक्रिमेटरी फैक्टर स्वतः ही बन जाता है। वैज्ञानिक अब LFS एंजाइम को आनुवंशिक रूप से दबाकर "बिना आँसू वाले" प्याज़ विकसित करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि प्याज़ का स्वाद थायोसल्फिनेट (thiosulphinate) नामक एक अलग यौगिक से आता है,इसलिए आँसू लाने वाले प्रभाव को हटाने से स्वाद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वास्तव में, शोध से पता चलता है कि LFS एंजाइम के बिना, थायोसल्फिनेट और अन्य फायदेमंद यौगिकों की मात्रा बढ़ सकती है, जो रक्त वसा को कम करने और
रक्त के थक्के जमने से रोकने में मदद करते हैं, जिससे एक ऐसा प्याज़ मिल सकता है जो न सिर्फ़ बिना आँसू वाला हो बल्कि सेहतमंद भी हो।जापान की एक खाद्य कंपनी, हाउस फूड्स, ने बिना आँसू वाला प्याज़ विकसित किया है। यह नवाचार उनकी रिसर्च से निकला है जिसने 2013 में आईजी नोबेल पुरस्कार जीता था, जिसके बारे महमने इस लेख में चर्चा की है।
संदर्भ


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